Dec 9, 2008

इस बार नहीं

इस बार नहीं
इस बार जब वो छोटीसी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
मैं उसे फू फू कर नहीं बहलाऊँगा
पनपने दूँगा उसकी टीस को
इस बार नहीं

इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा ,
उतारने दूँगा अंदर गहरे
इस बार नहीं

इस बार मैं न मरहम लगाऊँगा
न ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और न ही कहूँगा की तुम आँखें बंद करलो,
गर्दन उधर कर लो में दवा लगाता हूँ
देखने दूँगा सबको , हम सबको खुले नंगे घाव!

इस बार नहीं
इस बार जब उलझने देखूँगा , छटपटाहट देखूँगा
नहीं दौडूंगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं

इस बार काम का हवाला देकर नहीं उठाऊंगा औजार
नहीं करूँगा फिर से एक नई शुरुआत
नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूंगा ज़िन्दगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूँगा उसे कीचड में, टेढे मेढ़े रास्तों पे

नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान की पीक ओर खून का फर्क ही ख़तम हो जाए
इस बार नहीं

इस बार घावों को देखना है गौर से
थोड़े लंबे वक्त तक
कुछ फैसले और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
... प्रसून जोशी